भगदड़ हादसे पर नाराज हुए स्वामी यतींद्रानंद गिरि बोले-महाकुंभ को इवेंट बनाकर रख दिया
प्रयागराज । महाकुंभ मेले में भगदड़ को लेकर आम श्रद्धालुओं से लेकर अखाड़ों व संतों में बेहद नाराजगी देखी गयी। श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरि ने हादसे पर दुख जताया है। उन्होंने वीआईपी कल्चर के साथ ही महाकुंभ को एक इवेंट बना दिए जाने पर निशाना साधा है। संत ने प्रशासन की व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। इससे पहले निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी प्रेमानंद गिरि ने भी जमकर निशाना साधते हुए मेले की सुरक्षा को सेना के हवाले किए जाने की मांग उठाई।
महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरी ने कहा कि कुंभ मेला प्रयागराज मौनी अमावस्या के स्नान के वक्त मची भगदड़ एवं अनेक लोगों की की मृत्यु बहुत दुखद पीड़ा दायक है। कुंभ मेला प्रशासन की हठधर्मिता तथा नासमझी के चलते यह घटना घटी हमने अनेक कुम्भ किए हैं और देखे हैं। किंतु पहली बार किसी कुंभ में इतनी अव्यवस्था देखी है। अभी तक कुंभ समाप्ति की ओर है। किंतु कुंभ में किए जाने वाले कार्य अभी तक लंबित पड़े हैं। स्वामी यतींद्रानंद गिरी ने वीडियो बयान जारी करते हुए लिखा कि परंपरागत साधु संतों और संस्थाओं को मिलने वाली सुविधाएं टैन्ट, शौचालय, नल के लिए अभी तक साधु संतों को परेशान होना पड़ रहा है। मेला प्रशासन के अधिकारी जहां प्रतीक कुंभ में अपने-अपने सेक्टर और पूरे मेले में शिवरों में घूम-घूम कर खुद संतों को मिलने वाली सुविधाओं का ध्यान रखते थे।
इस बार साधु-संत अधिकारियों को खोज रहे हैं प्रशासन अधिकारी केवल वीआईपी जनों की आवभगत और उनके सुख सुविधा में लगे हुए हैं। इस कुंभ मेले में ट्रैफिक व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त है। जगह-जगह पुलिस केवल रास्ता और पुलों को बंद करने में लगी है क्योंकि रास्ते और पुल केवल वीआईपी लोगों की सुविधा के लिए है। मेला प्रशासन के अधिकारी कुंभ मेले की आध्यात्मिक और धार्मिक भावनाओं को ना जानते हैं और ना ही मानते हैं। मेले को भव्य और दिव्या कहा गया। किंतु वीआईपी और व्यावसायिक बनाकर भव्य बनाने का प्रयास तो हुआ किंतु मेले की आत्मा आध्यात्मिक और धार्मिकता जो की दिव्यता थी उसको दरकिनार कर दिया गया। उन्होंने कहा कि शासन और प्रशासन ने पूरा मेला एक इवेंट बनाकर रख दिया। कुंभ कोई इवेंट या व्यावसायिक मेला नहीं है। कुंभ एक धार्मिक और आध्यात्मिक मेला है यहां देवता आते हैं। साधु संत और कल्पवासी साधना करते हैं। शासन और प्रशासन दोनों के द्वारा देवताओं का मान सम्मान नहीं किया गया, उनको आदर नहीं दिया गया।
साधु संत तथा कल्पवासियों का आदर और उनकी सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा गया जिसके चलते मकर संक्रांति का स्नान भी दुर्व्यवस्थाओं से भरा रहा तथा इस मेले का मुख्य स्नान मौनी अमावस्या का देवताओं की नाराजगी को प्रकट करते हुए स्वीकार नहीं किया है। मेले में भीड़ यह दुर्व्यवस्था का कारण नहीं है क्योंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे विश्व में निमंत्रण दिया 144 साल के बाद कुंभ आ रहा है। अतः यह महाकुंभ होगा ऐसा प्रचारित किया क्या कुंभ का इतिहास क्या केवल 144 वर्ष का है? प्रत्येक 12 वर्ष में लगने वाला कुंभ अपने आप में 144 वर्ष बाद आता है। यह महाकुंभ कैसे हो गया? सरकार खुद कहती थी 40 से 45 करोड़ लोग आएंगे। सरकार का जो अनुमान था। लोग उसी अनुमान के अंतर्गत ही आए हैं। उससे अधिक नहीं तो फिर शासन और प्रशासन ने उसी अनुमान के अनुसार व्यवस्था क्यों नहीं कि यह प्रश्न उठता है। समूचे मेले में चाहे मेला अधिकारी हो अपार मेला अधिकारी हो एसएसपी मेला, डीआईजी मेला। किसी भी अधिकारी का मिलना तो दूर, फोन तक उठना भी संभव नहीं है। पूरे मेले में केवल चार-पांच राजनीतिक और आर्थिक प्रभावशाली संतों के अलावा मेला प्रशासन ने किसी को भी महत्व नहीं दिया।
कुंभ मेले का दुखद पहलू यह है की साधु संत अपने परंपरागत स्नान को नहीं कर सके तथा अखाड़े के देवता भी स्नान से वंचित रहे। शायद मेला प्रशासन के व्यवहार से देवता संतुष्ट नहीं थे। इसलिए देवताओं ने स्नान नहीं किया। अब देखना है मेले की दुर्व्यवस्था आज की घटना की नैतिक जिम्मेदारी कौन लेता है। उत्तर प्रदेश सरकार कुंभ में पधारे साधु संत तपस्वी और कल्पवासियों तथा श्रद्धालु भक्तजनों की भावनाओं और पीड़ा को कितना समझ पाती है और ऐसे संवेदनहीन मेला प्रशासनिक अधिकारियों के ऊपर क्या कार्रवाई करती है। हम अखाड़ा परिषद के सभी पदाधिकारी को साधुवाद धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने अमृत स्नान स्थगित करने का निर्णय किया क्योंकि अगर अमृत स्नान स्थगित ना होता तो आज प्रयाग में अकल्पनीय दुखद घटना निश्चित रूप से होती। क्योंकि मेला प्रशासन के पास अमृत स्थान कराने की ना कोई योजना थी ना तैयारी थी। और ना ही उनकी आंतरिक भावना थी। किंतु एक आश्चर्य है आखिर क्या बात है अखाड़ा परिषद, अखाड़ों के प्रमुख संत तथाकथित कुछ बड़े नाम वाले राजनीतिक संत और मीडिया इस दृष्टि से मौन और नेत्रहीन क्यों है।
इससे पहले महाकुंभ मेला में भगदड़ को लेकर निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी प्रेमानंद गिरि ने पुलिस-प्रशासन पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि जब सरकार को पता था कि कुंभ में इतने करोड़ लोग आएंगे तो महाकुंभ मेले का आयोजन सेना के माध्यम से क्यों नहीं कराया गया? प्रेमानंद गिरि ने कहा कि पिछले स्नान के बाद हम सभी अखाड़ों ने पूरे प्रशासन को सचेत किया था। प्रशासन को पता था कि 50 करोड़ लोग आने वाले हैं तो सेना के हवाले से कुंभ का आयोजन क्यों नहीं किया गया है। मैं उत्तर प्रदेश के डीजीपी और चीफ सेक्रेटरी को व्यक्तिगत कहता रहा कि आप लोग सेना बुलवाई और कुंभ को सेना के हवाले कीजिए। इतनी भीड़ आने के बाद पुलिस-प्रशासन के बस की बात नहीं है और उसी का ही परिणाम है कि किसी का बाप चला गया तो किसी का पुत्र चला गया। बहुत दुखद समाचार है और व्यथित करने वाला है।